देवेश प्रताप
तन्हाई अपनी व्यथा सुनाते हुए कहती है ......
अक्सर वो मुझसे ख़फा रहते है ।
जाने क्यों मुझसे जुदा रहते है ॥
मैं दामन विछा देती हूँ
उनकी ख़ुशी के लिए
जब उनके जीवन के
फूल मुरझा जाते है ॥
मचल जाती हूँ
उनकी एक हंसी के लिए
सहन होता नहीं ,ये देख कर
जब वो बेवफा के लिए रोया करते है ॥
दौड़ आती हूँ , पास
उनके लाख मना करने पर
खुश होता है मन ,उन्हें देख कर
चैन से जब वो सोया करते है ॥
''तन्हाई'' कह कर मुझे ,वो कोसा करते है ।
तन्हा मै भी तो हूँ, क्यूँ न वो समझा करते है ॥
''तन्हाई'' कह कर मुझे ,वो कोसा करते है ।
ReplyDeleteतन्हा मै भी तो हूँ, क्यूँ न वो समझा करते है ॥
बहुत अच्छे भाव !!