भारत देश में 'देवी' कही जाने वाली नारी पर सबसे ज़्यादा अत्याचार होता है । ख़ास कर नारी को मात्र एक वस्तु के रूप में देखा जाता है । त्याग करना तो इन्हें विरासत में दिया जाता है ....बचपन में अपने माँ-बाप , भाई के लिए शादी के बाद अपने पती और बच्चों के लिए बुढ़ापे में अपने बेटे के लिए । इस जीवन सफर में 'ख़ुद ' के लिए वक्त नहीं निकालती , कष्ट के कितने भी थपेड़े आये वो हमेशा सिथिल रहती है .....सिर्फ इसलिए कि उसकी वजह से किसी को कोई दुःख न पहुँचे , ........लेकिन कब तक कोई सहन करेगा ........बदलते समय के अनुसार महिलाओं में जागरूकता बढ़ी ......चाहे वो घरेलु हिंसा हो या बाहरी हिंसा उन्हें अपना हक़ समझ आने लगा । हाल में जब महिला आरक्षण बिल पास करने कि बात आई तो ......सबसे ज़्यादा चोट हम पुरुषों को हुई ये बात कोई व्यक्त स्वीकार करें या न करें । महिलाओं का पुरुष से आगे बढ़ जाने का डर सभी पुरुष के मन में आया होगा और ये आना स्वाभाभिक था खैर मंथन करने पर ये भी समझ में आगया कि ये ज़रूरत भी है इससे हमारे देश कि सूरत बदलेगी और महिलाएं को पुरषों के बराबर खड़े होने का मौका भी मिलेगा । .....वैसे मेरा मानना है पुरुष और स्त्री एक अमीबा के दो हिस्से है ..........जिसमें न कोई छोटा है न बड़ा दोनों ही बराबर है । अभी हाल में महिला आयोग ने मांग किया है कि ''पत्नी द्वारा पती के खिलाफ उसकी सहमती के बिना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने कि प्रक्रिया को बलात्कार श्रेणी में शामिल करें '' बड़ी ही आश्चर्य जनक मांग लेकिन आवश्यक मांग ........ऐसे कानून को तो तुरंत पास कर देना चाहिए । अहसासों और प्रेम के बंधन से बंधता है शादी का रिश्ता जहाँ वादें होते है एक दुसरे को खुश रखना और जीवन भर साथ निभाने का .........उसी बंधन में ऐसी जास्ती होने लगी कि ''ख़ुद के पती द्वारा शारीरक अत्याचार किया गया रात का वाकया .... सुबह थाने में उसकी रिपोर्ट लिखवाने जाएगी '' अब ऐसे भी दिन आगये कैसे होता होगा वो व्यक्ति जो अपनी ही पत्नी के भावनों कि कद्र किये बिना शारीरक भूख मिटाता होगा ......उस समय उसमें और एक जंगली जानवर में कोई फर्क नहीं नज़र आता होगा । ........ऐसे न जाने और कितने कष्ट सहती आ रही है इस देश के महिलाएं । यदि ये कानून पास भी हो जाये .......फिर भी १०० में १य २ ही महिला अपने पती के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाएंगी । ......शादी के बंधन में यदि एक बार गाँठ पड़ती है तो ......वो बंधन कमजोर पड़ जाता है। और भारतीय महिला में उनके द्वारा किसी कि दुनिया उजड़ जाये ये उनसे गवारा नहीं होता ........और फिर ऐसे मामलो के लिए तो मुझे बिलकुल भी नहीं लगता । तो क्या पुरुष उनके इसी नारीत्व गुण का फायदा उठाये .........नहीं .........यदि पुरुष तुम अपने आप को महान समझते हो तो .......ये तुम्हारा मिथ है ....... ''महान तो नारी है जो तुम्हे महान बनाने में अपना पूरा जीवन त्याग देती है ''
धन्य है वो माँ जिसके गर्भ से भगत सिंह जैसा साहसी ,वीर देशभक्त पैदा हुआ । गर्व से छाती चौड़ी हो गयी होगी,उस बाप कि जिस पल आज़ादी की भूख में हँसते-हँसते भगत सिंह ,राजगुरु और सुख देव फाँसी के फंदे को चूम लिया था। आज इन्ही लालों की 81 वी बलिदान दिवस है। आज ही का वो दिन था, जब इन वीरों ने हमें गुलामी से मुक्त कराने के लिए फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए थे । समय से एक दिन पूर्व इनका फाँसी पर चढ़ना, पूरे देश में आज़ादी पाने की ख्वाहिश को और भी भड़का दिया था । तभी तो गाँधी जी ने कहा था की " मैभगतसिंहकीविशेषताओंकोशब्दोंमेंबयांनहींकरसकता ,भगतसिंहकीदेशभक्तिऔरभारतीयताकेलिएउसकाअगाधप्रेमअतुलनीयहै।"
भगत सिंह ,सुख देव और राजगुरु का देश के प्रति अमिट प्रेम ,जूनून और जोश उनकी अविस्मर्णीय गाथा का अतुलनीय उदहारण है।
भगत सिंह द्वारा आखिरे शब्द जो उन्होंने हिंदुस्तान के गवर्नर जनरल को लिखा था कि "अगरआपकीसरकारहिन्दुस्तानीसमाज केऊपरीतबकोंकेनेताओंकोछोटी-मोटीरियायतोंवसमझौतोंकेजरियेलुभाकरअपनीतरफकरनेऔरइसतरहसंघर्षशीलजनसमुदायकेबीचकुछसमयकेलियेनिराशापैदाकरनेकीकोशिशकरतीहैतथाइसमेंकामयाबहोजातीहै, तोभीइसकीपरवाहनकरो।हमारीजंगजारीरहेगी।अलग-अलगसमयपरयहअलग-अलगरूपलेसकताहै।यहकभीखुलातोकभीगुप्त, कभीपूर्णतयाउत्साहजनकयाकभीजीवन-मौतकाघमासानसंघर्षहोसकताहै।रास्ताखूनीहोगायाकुछहदतकशांतिपूर्ण, इसकाचयनआपकेहाथमेंहै।जैसाभीजरूरीसमझतेहो, वैसाकरो।परन्तुवहजंगनिरंतरचलेगा, नयीताकत, ज्यादाबहादुरीऔरअडिगसंकल्पकेसाथ, जबतकसमाजवादीगणराज्यकीस्थापनानहोगी।"
मै बचपन से ही यह देशभक्ति गीत सुनता आ रहा हूँ ,और आज भी जब इसे सुनता हूँ तो उन्ही यादों के गलियारों में खो जाता हूँ । और आज इस गीत के माध्यम से इन जाबाजों को श्रधांजलि देता हूँ।
बचपन का सफर बहुत सुहाना होता है , कोई गम नहीं कोई बोझ नहीं, न कुछ खोने का डर, न कुछ पाने कि ललक ,ऊपर वाले का भी खेल निराला होता है किसी को इतनी खुशियाँ देता है कि उनकी जिंदगी उन्ही खुशियाँ के बीच कट जाती है। और किसी को इतना दुःख कि उन दुखों के बीच कुछ देखने को बचता ही नहीं ,और दुःख का असर तब ज्यादा होता है जब बचपन के खिलने का समय होता है।
एक शहर से दूसरे शहर ,एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक सफर करती रेल गाडी न जाने कितने यात्रियों को अपने आगोश में लेती है। और मंजिल आने पर छोड़ देती है । अक्सर रेलगाडी ,में बचपन सफर करता मिलता है हाथ में झाड़ू लिए , पोलिश लिया या फिर पानी कि बोतलें लियें , देश के सबसे बड़ी सेवा रेल सेवा में अक्सर ये नन्हे सेवक यात्रियों कि सेवा करते मिलते है ,कितना मार्मिक होता है ,जब एक बच्चा हाथ में झाड़ू लिए रेल के डिब्बे कि सफाई करना शुरू करता है। देख कर ऐसा लगता है जैसे उस नन्हे फरिस्ते को ऊपर वाले ने खुद भेजा हो ,सफाई करने के लिए वो फरिस्ता इस तरह मन लगा कर काम करता है जैसे रलवे ने खुद उसकी नियुक्ति किया है,सफाई करने के बाद जब ,वो नन्हे हाथ आगे बढते अपने मेहनताना लेने के लिए उस समय डिब्बे में बैठे कुछ यात्री जिनका दिल पसीजता है वो एक या दो रु निकाल कर पकड़ा देते है , और कुछ बुत बनजाते है जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं । अब देखिये दूसरा नन्हा सेवक आ गया इसके हाथ में बूट पोलिश करने के लिए ब्रुश है ,इस बच्चे कि आँखों में बस एक ही आश दिख रही है ,कि जिन्होंने भी चमड़े का जूता पहन हुआ है , वो पोलिश करवा ले जब कोई अपना जूता पोलिश करवाने के लिए पैर आगे बढाता है तो बच्चा उस जूते कि तरफ ऐसा लपकता जैसे उसकी सारी खुशी मिल गयी हो , और फिर जुट जाता मन लगा कर जूता पोलिश करने में ,उस वक्त बच्चे कि जितनी भी आकाँक्षाओं कि चमक होती है ,उस चमक को जूते में उतार देना चाहता है , क्यूंकि बूट पोलिश के अवेज़ में जो भी पैसा मिलेगा ,उन पैसों से अपनी इच्छाओं कि पूर्ति करने कि कोशिश करेगा . लेकिन इच्छाओं कि प्यास कभी बुझती नहीं , इच्छा कि प्यास बुझे या न बुझे लकिन यात्रियों कि प्यास बुझाने के लिए एक और बालक हाँथ में पानी कि बोतलें लिए यात्रियों के पास आता है , उस बच्चे ने शायद अपनी प्यास बुझाने के बारें में न सोचा हो ,लेकिन यात्रयों कि सेवा करने के लिए तत्पर्य है , ''निर्मल स्वच्छ पवित्र '' पानी के ये गुण बचपन में भी विद्यमान होता है कितनी समानता है पानी और बचपन में ,पानी मज़बूरी वश उस बोतल में कैद है .और वो बालक अपने जीवन से मजबूर है . ऐसे न जाने कितने बचपन अपने जीवन के साथ सफर कर रहे है , इन देश के भविष्य का जिम्मेदार कौन है उनके माँ -बाप या फिर सरकार , ये भी कहना मुश्किल . इन बच्चो का देख भाल करने के लिए कई गैर सरकारी संस्था काम करती है और कुछ सरकारी संस्था भी , तो क्या उस संस्था से जुड़े व्यक्तियों से ऐसे बच्चों से मुलाकात नहीं होती ,वैसे कभी तो वो भी रेल में सफर करते होंगे , लकिन ये भी बात है ऐसे लोग वातानुकूलित डिब्बों में सफर करते है , तो बात ही खत्म उस डिब्बे में भारत तो विकास कि चरम पर है ।
मार्च से लेकर अप्रैल तक विद्यालय से लेकर महा विधालय तक परीक्षाओं कि बहार रहेतीहै । साल भर बच्चो द्वारा कि गयी मेहनत का प्रयोग परीक्षाओं में होता है । आई पी यल (इंडियन प्रीमियर लीग ) कि धूम मची है सुबह से लेकर शाम तक लोगों कि जुबान पर आई पी यल के ही चर्चे रहते है। इस बहार में सबसे जायदा नुक्सान उनका हो रहा है जिनकी परीक्षा चल रही है या होने वाली है . .......वो बेचारे करें भी तो क्या करें खेल भी देखना ज़रूरी है और परीक्षा देना भी ज़रूरी है ..........खेल और परीक्षा दोनों समय के बाध्य है .क्यूंकि ये वक्त कभी लौट के नहीं आएगा ........खेल दुबारा भी होंगे लकिन शायद ये आनंद न रहे परीक्षा दुबारा भी होगी लेकिन तब तक बहुत कुछ छूट चुकाहोगा । बच्चे मजधार में हैं करें भी तो क्या करें क्रिकेट देखे या परीक्षा के लिए तैयारी करें ............मेरी तरह शायद बहुत कम ही लोग होंगे जो क्रिकेट जैसे खेल से दूरी पसंद करते होंगे . .......अभिभावक भी परेशान नजर आते हैं लेकिन वो भी क्या करें बच्चे से कही ज्यदा उन्हें भी दिलचस्पी है क्रिकट देखने में .......... फिलहाल पढ़ने वालों के लिए कही भी किसी से कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती ......लेकिन पेट कितना भी भरा हो सामने रसगुल्ला रखा हो तो खाने का मन ज़रूर करता है ......यदि उस समय ये सोच के अपने मन को रोके के अभी नहीं खायेंगे बाद में खा लेंगे तब भी मन उसी रसगुल्ले पर ही अटका रहेगा .........क्रिकेट के साथ भी यही है यदि क्रिकेट टीवी पर चल रहा हो तो कोई कैसे अपने आप को रोक ले ...........अगर मैं ये कहू कि आई पी यल जैसे मनोरंजक और दिलचस्प खेल परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए थोडा आगे पीछा करना चाहिए तो .....तो लोग मुझे पागल कहेंगे ‘’भला आई पी यल के लिए खरबो रूपये कि बात है ऐसे थोड़ी न होता है .........अब परीक्षा तो होती ही रह्ती है .......इससे भला क्या फर्क पड़ने वाला’’ शायद लोग ऐसे ही कुछ कहेंगे ........इसलिए मै भी कुछ नहीं कहूँगा अब जो कहना है आप ही कहिये ....
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इटावा में जन्मे मारकंडे जी के जीवन का पूरा समय इलाहबाद में गुज़रा। मारकंडे जी जिंदादिल और हंसमुख व्यक्ति थे, नवजवानों से उनका अनूठा अनुराग था। उन्होंने एक दर्जन से अधिक कहानी संग्रह की रचना की ,और अग्निपथ ,सेमल के फूल नामक बहुचर्चित उपन्यास भी लिखे। मारकंडे जी ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित किया ।
इसी गुरुवार (17 march) को दिल्ली में एक कैंसर अस्पताल में हिंदी के महान लेखक ने अंतिम साँस ली ।
''विचारों का दर्पण'' की ओर से महान लेखक को श्रधांजलि ।
मैं जिस बात का ज़िक्र आज कर रही हूँ वो न तो किसी विशेष personality से है और न ही किसी व्यक्ति विशेष से . बस एक ऐसा एहसास जो मुझे अक्सर होता है जब भी मैं किसी के अंदर कोई कला देखती हूँ और उसे अभावों कि ज़िन्दगी जीते हुए देखती हूँ .
मैं ‘Sapna jain’, just on the way to establish myself as a reputated & well known designer. मैं अपने innovation, अपने creation को लोगों तक पहुँचाने कि कोशिश करती हु । कहीं कामयाब होती हूँ तो कही असफल भी । जब कामयाब होती हूँ तो संतुष्टि के साथ एक एहसास होता है कि “हाँ मैं कुछ हु ”. मेरे पास शिक्षा है , एक परिवार है , और मेरे घर वालों का साथ भी , लेकिन दुःख उन्हें देख कर ज़्यादा होता है जिन्हें ये सब नहीं मिला ….उनके पास है तो बस उनकी कला , वो भी बहुत सिमटा हुआ । उनके पास कोई भी ऐसे साधन नहीं है जिससे वो आगे बढ़ सके ।
हमारे शहर (बाराबंकी उ.प्र) से थोडा बाहर कि तरफ में एक परिवार ने सड़क के किनारे पर कुछ सुन्दर मूर्तियाँ लगानी शुरू किया । चूँकि मैं कला कि प्रशंशक हूँ तो मुझे ज्यों ही पाता चला , मैंने वह जा कर देखा कि 1 छोटी सी झोपडी (जो कि ख़ुद उनकी बनायीं हुई थी ) में वो मूर्ति कला का काम करते थे । एक भाई और एक बहन मिल कर . दो छोटे -छोटे बच्चे थे जो कि नंगे मिटटी में घूम रहे थे . पूछने पर पता चला कि वो बहन के बच्चे थे …पति ने शायद छोड़ दिया था ।दोनों भाई बहन मिल कर अपनी कला के ज़रिये अपनी जीविका चला रहे थे । देख कर एक तरफ बहुत ख़ुशी हुई कि ऐसी जिजीविषा होनी चाहिए …अपनी कला को प्रदर्शित करना चाहिए , चाहे वो किसी भी लेवल पे हो । दूसरी ही तरफ एक मायूसी हुई कि इतनी सुंदर कला लेकिन ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी । उसके पीछे एक मुख्य कारन था कि हम बाहरी चीज़ों को बहुत तरजीह देते है लेकिन अपने ही देश कि चीजों को नकार देते है । इसका उत्तरदायी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि हम ख़ुद है …हमारी सोच है । अगर हम अपने देश कि चीज़ों को बढ़ावा दे , उनकी कला को प्रोत्साहित करें …तो शायद हमारे कलाकार ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी न जियें ।
जी हाँ मै भी ठीक इसी तरह हतप्रभ रह गया था ,जिस क्षण मैंने ये ख़बरसुनी।
२३ मार्च 1931 तो आपको निश्चित ही याद होगी,आप सही सोच रहे हैं,इस दिन शहीद भगत सिंह,राज गुरु और सुखदेव को फाँसी दी गयी थी ,इसे हम शहीद दिवस के नाम से भी जानते हैं। करोंड़ो युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे, देश के असली हीरो को उनके 81 वे बलिदान दिवस पर श्रधांजलि देने के लिए पंजाब सरकार के आबकारी विभाग को क्या अनूठा तरीका सूझा है। आने वाले२३तारीखकोपंजाबसरकारनेराज्यमेंशराबकेठेकोंकीबोलियोंकोअंतिमरूपदेनेकानिर्णयलियाहै।आम जनता की अकांझाओ और परेशानियों की तो बात ही जाने दीजिये,हम यह भी नहीं चाहते कि इनकी याद में कोई सेमीनार कोई कार्यक्रम हो,लेकिन इस तरह का कार्य बिल्कुल निंदनीय और अशोभनीय है।
हमें पता है कि देश कि सरकार के पास इतना समय नहीं है कि इन शहीदों के लिए कहीं दीप प्रज्वलित करायें और 2 मिनट का मौन रखे ,यहाँ मै नेहरु परिवार कि बात नहीं कर रहा । उस दिन तो बड़े से बड़े नेताओं का तांता लगा रहता है,सब अपना-अपना प्लेटफोर्म बनाने में लगे रहते हैं कि बस एक नज़र मेरे उपर भी पड़ जाए। मै ये नहीं कह रह कि उनकी याद में ऐसा न हो,लेकिन हिन्दुस्तान को आज़ाद करवाने में सिर्फ उन्ही का योगदान नहीं था ,और भी बहुत से स्वतंत्रता सेनानी थे,जिनकी स्मृति में भी दिलचस्पी दिखना चाहिए।
और शहरों का तो नहीं पता लेकिन इलाहाबाद इस मामले में भाग्यशाली है ,जहाँ प्रति वर्ष चन्द्र शेखर आज़ाद की याद में कम्पनी बाग़ में स्थ्ति अल्फ्रेड पार्क में जहाँ आज़ाद जी कि मूर्ति है,वहां कम से कम दीप जला कर उनको श्रधांजलि दी जाती है। लेकिन यहाँ बात २३ मार्च कि कर रहा हूँ तो इस ख़ास दिन इस तरह का कार्य नहीं होना चाहिए ,वो भी सरकार द्वारा। पंजाब सरकार शायद यह भूल गयी कि शहीदों कि बनायी नौजवान भारत सभा का सबसे बड़ा सन्देश यही था कि युवा अपनी कमजोरियों को दूर करें ,नहीं तो खुदगर्ज लोग इसका बहुत ही ग़लत फायदा उठाएंगे। पंजाबसरकारकेइसकृतसेसाफस्पष्टहोताहैकिइनकेमनमेंशहीदोंकेलिएकितनास्नेह,सम्मानओर इज्ज़तहै। किसी ने क्या खूब कहा है कि ---
भारत ने जिस क्षेत्र में सबसे ज़्यादा तरक्की की है वह है संचार का क्षेत्र। रेडियो , टी वी , पेजर, मोबाइल ये सब संचार क्रांति का ही नतीजा है। आज हामारा भारत दूरसंचार क्षेत्र के लिए सबसे ज़्यादा संभावनाओ वाला बाज़ार है, दुनिया कि बहुत सी कंपनीया हमारे देश में अपना काम फैला रही हैं ।
निश्चित तौर पर हम इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से विकास कर रहे हैं और हमारे देश का हर इंसान आज मोबाइल का उपयोग करना चाहता है। अब तो जीवन इसकी वजह से काफी तेज हो गया है और अपनों से संपर्क में रहने का सबसे अच्छा माध्यम है मोबाइल। मोबाइल ने जिसको सबसे ज़्यादा नुक्सान पहुँचाया है, वो है प्रेम पत्र । पहले प्रेमी प्रेमिका आपस में पत्र के माध्यम से अपनी भावानाओं को व्यक्त करते थे और सवाल भेजने और उसका उत्तर मिलने में कई दिन लग जाते थे, लेकिन मोबाइल के आने से पत्र का काम लगभग खत्म सा हो गया है। अब सब कुछ मोबाइल पर ही कुछ मिनटों में हो जाता है।
मोबाइल जिसके आज हम लोग आदि हो गए हैं। हमने मोबाइल के उपयोग को अपनी जिंदगी में सबसे ऊँचा स्थान दे दिया है मोबाइल नहीं तो किसी से संपर्क में रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में बच्चे को पैदा होने के बाद जो सबसे ज़रूरी चीज दी जाऐगी वो मोबाइल ही होगा।
नफा तो हमसे बहुत देख लिया इस मोबाइल का लेकिन इसका बहुत बड़ा नुक्सान भी है। हम सब जो मोबाइल के आदि हो चुके हैं अब १ मिनट भी बिना इसके रह नहीं सकते। मोबाइल अगर १ मिनट के लिए भी बंद हो जाता है चाहें बैट्री खत्म हो गई हो या नेटवर्क ना आ रहा हो या किसी भी वजह से तो हम सब परेशान हो जाते है और इस जुगाड़ में जुट जाते हैं कि कितनी जल्दी इसको चालू कर दे फिर से, इसकी वजह से हम टेंशन में आ जाते हैं और कई बार तो लोगो का बी पी भी हाई हो जाता है। इस तरह कई जिनको दिक्कत होती है वो नोमोफोबिया (nomophobia) नमक मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
कई बार ऐसा होता है कि मोबाइल जेब में है और हमको आभास होता है की मोबाइल की बेल बज रही है किसी की कॉल आ रही है, लेकिन जब देखते हैं तो किसी कि कॉल नहीं आ रही होती है, ऐसा आभास हमें बार बार होता है। ऐसा होना भी १ मानसिक रोग का लक्षण कहलाता है जिसको रिंगजयती (ringxiety) कहते हैं। जितना आधुनिक हम हो रहे हैं उसे रूप में बीमारियाँ और रोग भी आधुनिक हो रहे हैं। शायद ही मोबाइल का दूसरा कोई विकल्प है, लेकिन अगर हम सावधानी बरते तो इससे होने वाले रोगों से बचा सकते हैं।
ध्यान दीजीये आप कहीं इनमे से किसी के शिकार तो नहीं।
कॉलेज का पेपर चलने के कारण इस बार कि होली में हम [मै और देवेश ] घर नहीं जा पाए। होली के एक दिन पहले जब हम यहाँ के अपने वाले घर को जाने लगे। हम लोग दिल्ली नॉएडा के बोर्डर पर रहते हैं जहाँ से हमारा कॉलेज महज १५ मिनट कि दूरी पर है,यहाँ अपना घर होने पर भी घर से कॉलेज दूर होने के कारण हम घर पर नहीं रह पाते ,जब हम इलाहाबाद में रह कर पढाई करते थे फिर भी हम वहां अपने घर में नहीं रह पाते थे इलाहाबाद के एक कवि हैं शायद उन्होंने ठीक ही कहा था कि "परिंदेभीनहींरहतेपरायेआशियानेमें, हमारीतोउम्रगुज़रीहैकिरायेकेमकानोंमें"
पूरबी दिल्ली से पश्चिमी दिल्ली कि ओर जब हम चले तो हमने देखा कि आज वही रास्ता जहाँ गाड़ियों कि लम्बी कतार लगी रहती थी, सड़के खचा -खच लोगों से भरी होती थी,चारों तरफ शोर गुल,कोलाहल के अलावा कहीं कुछ न दिखाई देता था और न ही सुनाई। लेकिन आज ऐसा नहीं था, आज वही रास्ता एकदम शांत, दूषित वातावरण बिल्कुल शुद्ध हुआ, और वाहन खूब फैल कर चल रहे थे। मन में यही विचार आ रहा था कि अक्सर यही चर्चा होती है कि भारत को विकसित देश कि फेहरिस्त में लाना है,जिसके लिए सबसे पहले जनसंख्या को काम करना है,और आसाक्षरता को दूर भगाना है । आज के समय में जनसंख्या सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई है जिसके निवारण के लिए सरकार कि तरफ से प्रयास किये जा रहे हैं,लेकिन सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती जब तक जनता का पूरा सहयोग ना मिले।
आज से लगभग १५ साल पहले जब मै छोटा था और गर्मियों कि छुटियों में जब दिल्ली आया करता था । उस समय दिल्ली की ट्राफिक का बहुत ही बुरा हाल था, न कोई फ्ल्योवर और न ही मेट्रो जैसी अंतर्राष्ट्रीय सुविधा। लेकिन अब ठीक इसी के विपरीत आज इतने फ्ल्योवर , फूटओवर ब्रिज ,सबवे,मेट्रो बनने के बाद भी वही पुराना हाल वही रुला देने वाली ट्राफिक। कॉमनवेल्थ गेम के चलते दिल्ली का सर्वंगीद विकास तो हो रहा है लेकिन ट्राफिक का वही आलम है,जो पहले था।
सारी समस्या की जड़ जनसंख्या ही है, मैंने तो भैया सोच लिया है की "हमदो, हमारेदो'',लेकिन कहीं विवाह होने तक चीन की तरह हम दो और हमारे एक का नियम आ जाए तो कोई अचरज नहीं होगा क्यों???
इतना सोचते समझते आत्म मंथन करते जब अचानक समय से पहले घर पहुँच गए तब याद आया की आज तो होली की छूट्टी की वजह से भीड़ भाड़ नहीं थी,और इसी कारण हम जल्दी आ गए ,तब मन से यही आवाज़ आई की काशयहीजनसंख्याहोती ।
जब भी बात उठती है सहनशीलता की शर्म हया की तब हम नारी का जिक्र करता हैं, की हमारी भारतीय नारी सहनशीलता शर्म हया की देवी होती है। हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है, हम पूजा करते हैं इनकी।
लेकिन जब भी बात उठती है अपने मन के विचारों को प्रगट करने की , अपनी भावनाओ को को लेकर खुले मन से बात करने की , स्वछंद हो के खुले आस्मां में अपने मन की मनमानी करने की तब भी हम हमारी भारतीय नारी को दबा कुचला पाते हैं।
कभी कभी सोच के मन बहुत विचलित हो जाता है की ये कैसा समाज है हमारा जहाँ १ तरफ हम नारी को शक्ति की देवी मान के पूजा करते हैं , तो दूसरी तरफ महेज कुछ दहेज़ के पैसो के लिए जला देते हैं। कितना दोगला पन है इस समाज में। कई बार देखने में आया है की जिसको हम रक्षक समझते हैं वही भक्षक निकलता है। मेरे शहर में जो नारी समाज कल्याण के अध्यक्ष थे उनोहोने ही अपने बेटे की शादी के २ साल बाद अपनी बहु को दहेज़ के लिए के मार दिया । हर चीज में हमने आज बहुत तरक्की कर ली है और सामाजिक तौर पर भी हम आज बहुत मजबूत हो गए हैं। लेकिन आज भी जब बात आती है नारी की तो हम सब फिर से गैर जिम्मेदार और १ बिना विकसित दिमाग वाले इन्सानकी तरह सोचने लगते हैं। अगर लड़की घर से बहार जा रही है तो किस रस्ते से जाऐगी, क्या पहेन के बहार जाऐगी। कई बार यहाँ तक होता है की अपने मोबाइल में किसका नंबर रखन है किसका नहीं ये फैसल भी उसका नहीं होता है। हम विकास कर रहे हैं समाज की भलाई के लिए और उन्नति के लिए लेकिन अगर समाज के १ वर्ग को दबा दिया जाऐगा तो ऐसा विकास किस काम का।