Saturday, March 20, 2010

अस्त हो गया हिंदी साहित्य का मार्कन्डे नाम का सूरज


हिंदी साहित्य में नई कहानियों के आन्दोलन का बुनियादी लेखक मारकंडे जी अब हमारे बीच नहीं रहे 1955 में उन्होंने हंसा जाई अकेला नामक कहानी से हिंदी साहित्य में नई कहानियो को नया रूप दिया।

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इटावा में जन्मे मारकंडे जी के जीवन का पूरा समय इलाहबाद में गुज़रा। मारकंडे जी जिंदादिल और हंसमुख व्यक्ति थे, नवजवानों से उनका अनूठा अनुराग था। उन्होंने एक दर्जन से अधिक कहानी संग्रह की रचना की ,और अग्निपथ ,सेमल के फूल नामक बहुचर्चित उपन्यास भी लिखे। मारकंडे जी ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित किया ।

इसी गुरुवार (17 march) को दिल्ली में एक कैंसर अस्पताल में हिंदी के महान लेखक ने अंतिम साँस ली ।

''विचारों का दर्पण'' की ओर से महान लेखक को श्रधांजलि ।


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