Friday, March 26, 2010

समां और परवाना ......

देवेश प्रताप


समां और परवाना एक दूसरे से अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहते है .....


समां कहती है

जलने दो मुझे

अकेले इस विरह में

तुम यूँ ने मेरे पास

आया करो,


परवाना कहता है

तुम्हारे इस प्यार पर

प्रिय ,मैं मिलने के

लिए मचल जाता हूं ,


समां

बिखर जाती हूँ

तेरा प्यार पा कर,

तेरे छुअन से मैं

पिघल जाती हूं,


परवाना

तेरे आगोश में

आकार मै खो जाता हूं

जन्नत तेरे प्यार में पा

जाता हूं


समां

ए परवाने

ये समां तेरे लिए ही

रोशन होती है ,

तेरे प्यार में जलकर

इस जहां को रोशन करती है ॥

Thursday, March 25, 2010

महान तो नारी हैं ..........

देवेश प्रताप

भारत देश में 'देवी' कही जाने वाली नारी पर सबसे ज़्यादा अत्याचार होता है । ख़ास कर नारी को मात्र एक वस्तु के रूप में देखा जाता है । त्याग करना तो इन्हें विरासत में दिया जाता है ....बचपन में अपने माँ-बाप , भाई के लिए शादी के बाद अपने पती और बच्चों के लिए बुढ़ापे में अपने बेटे के लिए । इस जीवन सफर में 'ख़ुद ' के लिए वक्त नहीं निकालती , कष्ट के कितने भी थपेड़े आये वो हमेशा सिथिल रहती है .....सिर्फ इसलिए कि उसकी वजह से किसी को कोई दुःख न पहुँचे , ........लेकिन कब तक कोई सहन करेगा ........बदलते समय के अनुसार महिलाओं में जागरूकता बढ़ी ......चाहे वो घरेलु हिंसा हो या बाहरी हिंसा उन्हें अपना हक़ समझ आने लगा । हाल में जब महिला आरक्षण बिल पास करने कि बात आई तो ......सबसे ज़्यादा चोट हम पुरुषों को हुई ये बात कोई व्यक्त स्वीकार करें या न करें । महिलाओं का पुरुष से आगे बढ़ जाने का डर सभी पुरुष के मन में आया होगा और ये आना स्वाभाभिक था खैर मंथन करने पर ये भी समझ में आगया कि ये ज़रूरत भी है इससे हमारे देश कि सूरत बदलेगी और महिलाएं को पुरषों के बराबर खड़े होने का मौका भी मिलेगा । .....वैसे मेरा मानना है पुरुष और स्त्री एक अमीबा के दो हिस्से है ..........जिसमें न कोई छोटा है न बड़ा दोनों ही बराबर है ।
अभी हाल में महिला आयोग ने मांग किया है कि ''पत्नी द्वारा पती के खिलाफ उसकी सहमती के बिना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने कि प्रक्रिया को बलात्कार श्रेणी में शामिल करें '' बड़ी ही आश्चर्य जनक मांग लेकिन आवश्यक मांग ........ऐसे कानून को तो तुरंत पास कर देना चाहिए । अहसासों और प्रेम के बंधन से बंधता है शादी का रिश्ता जहाँ वादें होते है एक दुसरे को खुश रखना और जीवन भर साथ निभाने का .........उसी बंधन में ऐसी जास्ती होने लगी कि ''ख़ुद के पती द्वारा शारीरक अत्याचार किया गया रात का वाकया .... सुबह थाने में उसकी रिपोर्ट लिखवाने जाएगी '' अब ऐसे भी दिन आगये कैसे होता होगा वो व्यक्ति जो अपनी ही पत्नी के भावनों कि कद्र किये बिना शारीरक भूख मिटाता होगा ......उस समय उसमें और एक जंगली जानवर में कोई फर्क नहीं नज़र आता होगा । ........ऐसे न जाने और कितने कष्ट सहती आ रही है इस देश के महिलाएं । यदि ये कानून पास भी हो जाये .......फिर भी १०० में १य २ ही महिला अपने पती के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाएंगी । ......शादी के बंधन में यदि एक बार गाँठ पड़ती है तो ......वो बंधन कमजोर पड़ जाता है। और भारतीय महिला में उनके द्वारा किसी कि दुनिया उजड़ जाये ये उनसे गवारा नहीं होता ........और फिर ऐसे मामलो के लिए तो मुझे बिलकुल भी नहीं लगता । तो क्या पुरुष उनके इसी नारीत्व गुण का फायदा उठाये .........नहीं .........यदि पुरुष तुम अपने आप को महान समझते हो तो .......ये तुम्हारा मिथ है ....... ''महान तो नारी है जो तुम्हे महान बनाने में अपना पूरा जीवन त्याग देती है ''

Tuesday, March 23, 2010

ये शहीदों की जय हिन्द बोली ........

विकास पाण्डेय

धन्य है वो माँ जिसके गर्भ से भगत सिंह जैसा साहसी ,वीर देशभक्त पैदा हुआ । गर्व से छाती चौड़ी हो गयी होगी,उस बाप कि जिस पल आज़ादी की भूख में हँसते-हँसते भगत सिंह ,राजगुरु और सुख देव फाँसी के फंदे को चूम लिया था।
आज इन्ही लालों की 81 वी बलिदान दिवस है। आज ही का वो दिन था, जब इन वीरों ने हमें गुलामी से मुक्त कराने के लिए फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए थे । समय से एक दिन पूर्व इनका फाँसी पर चढ़ना, पूरे देश में आज़ादी पाने की ख्वाहिश को और भी भड़का दिया था । तभी तो गाँधी जी ने कहा था की " मै भगत सिंह की विशेषताओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता ,भगत सिंह की देशभक्ति और भारतीयता के लिए उसका अगाध प्रेम अतुलनीय है "

भगत सिंह ,सुख देव और राजगुरु का देश के प्रति अमिट प्रेम ,जूनून और जोश उनकी अविस्मर्णीय गाथा का अतुलनीय उदहारण है।

भगत सिंह द्वारा आखिरे शब्द जो उन्होंने हिंदुस्तान के गवर्नर जनरल को लिखा था कि "अगर आपकी सरकार हिन्दुस्तानी समाज के ऊपरी तबकों के नेताओं को छोटी-मोटी रियायतों समझौतों के जरिये लुभाकर अपनी तरफ करने और इस तरह संघर्षशील जन समुदाय के बीच कुछ समय के लिये निराशा पैदा करने की कोशिश करती है तथा इसमें कामयाब हो जाती है, तो भी इसकी परवाह करो। हमारी जंग जारी रहेगी अलग-अलग समय पर यह अलग-अलग रूप ले सकता है। यह कभी खुला तो कभी गुप्त, कभी पूर्णतया उत्साहजनक या कभी जीवन-मौत का घमासान संघर्ष हो सकता है। रास्ता खूनी होगा या कुछ हद तक शांतिपूर्ण, इसका चयन आपके हाथ में है। जैसा भी जरूरी समझते हो, वैसा करो। परन्तु वह जंग निरंतर चलेगा, नयी ताकत, ज्यादा बहादुरी और अडिग संकल्प के साथ, जब तक समाजवादी गणराज्य की स्थापना होगी "

मै बचपन से ही यह देशभक्ति गीत सुनता आ रहा हूँ ,और आज भी जब इसे सुनता हूँ तो उन्ही यादों के गलियारों में खो जाता हूँ । और आज इस गीत के माध्यम से इन जाबाजों को श्रधांजलि देता हूँ।


ये शहीदों कि जय हिन्द बोली ,
ऐसी वैसी ये बोली नहीं है
इनके माथे पर है खूँ का टीका ,
देखो देखो ये रोली नहीं है
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थक गया वीर जब लड़ते लड़ते ,
माँ कि ममता तड़प कर ये बोली
मेरे लाल गोदी में सो जा ,
अब तेरे पास गोली नहीं है
नहीं है, अब तेरे पास गोली नहीं है

Monday, March 22, 2010

रेल के नन्हे सेवक



देवेश प्रताप


बचपन का सफर बहुत सुहाना होता है , कोई गम नहीं कोई बोझ नहीं, न कुछ खोने का डर, न कुछ पाने कि ललक ,ऊपर वाले का भी खेल निराला होता है किसी को इतनी खुशियाँ देता है कि उनकी जिंदगी उन्ही खुशियाँ के बीच कट जाती है। और किसी को इतना दुःख कि उन दुखों के बीच कुछ देखने को बचता ही नहीं ,और दुःख का असर तब ज्यादा होता है जब बचपन के खिलने का समय होता है।

एक शहर से दूसरे शहर ,एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक सफर करती रेल गाडी न जाने कितने यात्रियों को अपने आगोश में लेती है। और मंजिल आने पर छोड़ देती है । अक्सर रेलगाडी ,में बचपन सफर करता मिलता है हाथ में झाड़ू लिए , पोलिश लिया या फिर पानी कि बोतलें लियें , देश के सबसे बड़ी सेवा रेल सेवा में अक्सर ये नन्हे सेवक यात्रियों कि सेवा करते मिलते है ,कितना मार्मिक होता है ,जब एक बच्चा हाथ में झाड़ू लिए रेल के डिब्बे कि सफाई करना शुरू करता है। देख कर ऐसा लगता है जैसे उस नन्हे फरिस्ते को ऊपर वाले ने खुद भेजा हो ,सफाई करने के लिए वो फरिस्ता इस तरह मन लगा कर काम करता है जैसे रलवे ने खुद उसकी नियुक्ति किया है ,सफाई करने के बाद जब ,वो नन्हे हाथ आगे बढते अपने मेहनताना लेने के लिए उस समय डिब्बे में बैठे कुछ यात्री जिनका दिल पसीजता है वो एक या दो रु निकाल कर पकड़ा देते है , और कुछ बुत बनजाते है जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं । अब देखिये दूसरा नन्हा सेवक आ गया इसके हाथ में बूट पोलिश करने के लिए ब्रुश है ,इस बच्चे कि आँखों में बस एक ही आश दिख रही है ,कि जिन्होंने भी चमड़े का जूता पहन हुआ है , वो पोलिश करवा ले जब कोई अपना जूता पोलिश करवाने के लिए पैर आगे बढाता है तो बच्चा उस जूते कि तरफ ऐसा लपकता जैसे उसकी सारी खुशी मिल गयी हो , और फिर जुट जाता मन लगा कर जूता पोलिश करने में ,उस वक्त बच्चे कि जितनी भी आकाँक्षाओं कि चमक होती है ,उस चमक को जूते में उतार देना चाहता है , क्यूंकि बूट पोलिश के अवेज़ में जो भी पैसा मिलेगा ,उन पैसों से अपनी इच्छाओं कि पूर्ति करने कि कोशिश करेगा . लेकिन इच्छाओं कि प्यास कभी बुझती नहीं , इच्छा कि प्यास बुझे या न बुझे लकिन यात्रियों कि प्यास बुझाने के लिए एक और बालक हाँथ में पानी कि बोतलें लिए यात्रियों के पास आता है , उस बच्चे ने शायद अपनी प्यास बुझाने के बारें में न सोचा हो ,लेकिन यात्रयों कि सेवा करने के लिए तत्पर्य है , ''निर्मल स्वच्छ पवित्र '' पानी के ये गुण बचपन में भी विद्यमान होता है कितनी समानता है पानी और बचपन में ,पानी मज़बूरी वश उस बोतल में कैद है .और वो बालक अपने जीवन से मजबूर है . ऐसे न जाने कितने बचपन अपने जीवन के साथ सफर कर रहे है , इन देश के भविष्य का जिम्मेदार कौन है उनके माँ -बाप या फिर सरकार , ये भी कहना मुश्किल . इन बच्चो का देख भाल करने के लिए कई गैर सरकारी संस्था काम करती है और कुछ सरकारी संस्था भी , तो क्या उस संस्था से जुड़े व्यक्तियों से ऐसे बच्चों से मुलाकात नहीं होती ,वैसे कभी तो वो भी रेल में सफर करते होंगे , लकिन ये भी बात है ऐसे लोग वातानुकूलित डिब्बों में सफर करते है , तो बात ही खत्म उस डिब्बे में भारत तो विकास कि चरम पर है ।


Sunday, March 21, 2010

परीक्षा या आई पी यल ???????

देवेश प्रताप

मार्च से लेकर अप्रैल तक विद्यालय से लेकर महा विधालय तक परीक्षाओं कि बहार हेती है । साल भर बच्चो द्वारा कि गयी मेहनत का प्रयोग परीक्षाओं में होता है । आई पी यल (इंडियन प्रीमियर लीग ) कि धूम मची है सुबह से लेकर शाम तक लोगों कि जुबान पर आई पी यल के ही चर्चे रहते है। इस बहार में सबसे जायदा नुक्सान उनका हो रहा है जिनकी परीक्षा चल रही है या होने वाली है . .......वो बेचारे करें भी तो क्या करें खेल भी देखना ज़रूरी है और परीक्षा देना भी ज़रूरी है ..........खेल और परीक्षा दोनों समय के बाध्य है .क्यूंकि ये वक्त कभी लौट के नहीं आएगा ........खेल दुबारा भी होंगे लकिन शायद ये आनंद न रहे परीक्षा दुबारा भी होगी लेकिन तब तक बहुत कुछ छूट चुका होगा । बच्चे मजधार में हैं करें भी तो क्या करें क्रिकेट देखे या परीक्षा के लिए तैयारी करें ............मेरी तरह शायद बहुत कम ही लोग होंगे जो क्रिकेट जैसे खेल से दूरी पसंद करते होंगे . .......अभिभावक भी परेशान नजर आते हैं लेकिन वो भी क्या करें बच्चे से कही ज्यदा उन्हें भी दिलचस्पी है क्रिकट देखने में .......... फिलहाल पढ़ने वालों के लिए कही भी किसी से कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती ......लेकिन पेट कितना भी भरा हो सामने रसगुल्ला रखा हो तो खाने का मन ज़रूर करता है ......यदि उस समय ये सोच के अपने मन को रोके के अभी नहीं खायेंगे बाद में खा लेंगे तब भी मन उसी रसगुल्ले पर ही अटका रहेगा .........क्रिकेट के साथ भी यही है यदि क्रिकेट टीवी पर चल रहा हो तो कोई कैसे अपने आप को रोक ले ...........अगर मैं ये कहू कि आई पी यल जैसे मनोरंजक और दिलचस्प खेल परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए थोडा आगे पीछा करना चाहिए तो .....तो लोग मुझे पागल कहेंगे ‘’भला आई पी यल के लिए खरबो रूपये कि बात है ऐसे थोड़ी न होता है .........अब परीक्षा तो होती ही रह्ती है .......इससे भला क्या फर्क पड़ने वाला’’ शायद लोग ऐसे ही कुछ कहेंगे ........इसलिए मै भी कुछ नहीं कहूँगा अब जो कहना है आप ही कहिये ....


Saturday, March 20, 2010

अस्त हो गया हिंदी साहित्य का मार्कन्डे नाम का सूरज


हिंदी साहित्य में नई कहानियों के आन्दोलन का बुनियादी लेखक मारकंडे जी अब हमारे बीच नहीं रहे 1955 में उन्होंने हंसा जाई अकेला नामक कहानी से हिंदी साहित्य में नई कहानियो को नया रूप दिया।

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इटावा में जन्मे मारकंडे जी के जीवन का पूरा समय इलाहबाद में गुज़रा। मारकंडे जी जिंदादिल और हंसमुख व्यक्ति थे, नवजवानों से उनका अनूठा अनुराग था। उन्होंने एक दर्जन से अधिक कहानी संग्रह की रचना की ,और अग्निपथ ,सेमल के फूल नामक बहुचर्चित उपन्यास भी लिखे। मारकंडे जी ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित किया ।

इसी गुरुवार (17 march) को दिल्ली में एक कैंसर अस्पताल में हिंदी के महान लेखक ने अंतिम साँस ली ।

''विचारों का दर्पण'' की ओर से महान लेखक को श्रधांजलि ।


Friday, March 19, 2010

अपने देश कि कला को बढ़ावा दें ......



मैं जिस बात का ज़िक्र आज कर रही हूँ वो न तो किसी विशेष personality से है और न ही किसी व्यक्ति विशेष से . बस एक ऐसा एहसास जो मुझे अक्सर होता है जब भी मैं किसी के अंदर कोई कला देखती हूँ और उसे अभावों कि ज़िन्दगी जीते हुए देखती हूँ .

मैं Sapna jain’, just on the way to establish myself as a reputated & well known designer. मैं अपने innovation, अपने creation को लोगों तक पहुँचाने कि कोशिश करती हु । कहीं कामयाब होती हूँ तो कही असफल भी । जब कामयाब होती हूँ तो संतुष्टि के साथ एक एहसास होता है कि “हाँ मैं कुछ हु ”. मेरे पास शिक्षा है , एक परिवार है , और मेरे घर वालों का साथ भी , लेकिन दुःख उन्हें देख कर ज़्यादा होता है जिन्हें ये सब नहीं मिला ….उनके पास है तो बस उनकी कला , वो भी बहुत सिमटा हुआ । उनके पास कोई भी ऐसे साधन नहीं है जिससे वो आगे बढ़ सके ।

हमारे शहर (बाराबंकी उ.प्र) से थोडा बाहर कि तरफ में एक परिवार ने सड़क के किनारे पर कुछ सुन्दर मूर्तियाँ लगानी शुरू किया । चूँकि मैं कला कि प्रशंशक हूँ तो मुझे ज्यों ही पाता चला , मैंने वह जा कर देखा कि 1 छोटी सी झोपडी (जो कि ख़ुद उनकी बनायीं हुई थी ) में वो मूर्ति कला का काम करते थे । एक भाई और एक बहन मिल कर . दो छोटे -छोटे बच्चे थे जो कि नंगे मिटटी में घूम रहे थे . पूछने पर पता चला कि वो बहन के बच्चे थे …पति ने शायद छोड़ दिया था ।दोनों भाई बहन मिल कर अपनी कला के ज़रिये अपनी जीविका चला रहे थे । देख कर एक तरफ बहुत ख़ुशी हुई कि ऐसी जिजीविषा होनी चाहिए …अपनी कला को प्रदर्शित करना चाहिए , चाहे वो किसी भी लेवल पे हो । दूसरी ही तरफ एक मायूसी हुई कि इतनी सुंदर कला लेकिन ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी । उसके पीछे एक मुख्य कारन था कि हम बाहरी चीज़ों को बहुत तरजीह देते है लेकिन अपने ही देश कि चीजों को नकार देते है । इसका उत्तरदायी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि हम ख़ुद है …हमारी सोच है । अगर हम अपने देश कि चीज़ों को बढ़ावा दे , उनकी कला को प्रोत्साहित करें …तो शायद हमारे कलाकार ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी न जियें ।

मैंने तो अपने स्तर से जितना हो सका किया ..बस चाहती हूँ कि आप भी अपने लेवल से जो बन सकें ज़रूर करें बहुत बहुत धन्यवाद

लेखिका

सपना जैन (Creative Designer)

DREAM CREATION

http://www.newdreamcreation.com/


प्रस्तुतकर्ता

रमेश मौर्या