क्रिकेट के छक्के
चौके से दूर अब वक़्त आ गया है,
हाँकी का
। २८ फरवरी २०१० को हाँकी का महासंग्राम शुरू हो जायेगा और जिसके साथ शुरू हो जाएगी एक जंग जिस पर
लाखों खेल प्रेमी नजर लगाये बैठे हैं । यह महासंग्राम सिर्फ हाँकी का नहीं
है, ये महासंग्राम
है, भारतीय हाँकी के अस्तित्व
का, यह वही हाकी है जिसने ध्यानचंद, कैप्टेन
रूपसिंह, अजीतपाल
सिंह, उधम
सिंह, अशोक कुमार, परगट
सिंह, धनराज पिल्लई तक कई महान खिलाडयों को जन्म
दिया। यह वही हाकी है जिसने हमारे लिए ओलंपिक में ८ स्वर्ण पदक जीते
है। यह वही स्वर्णिम युग था हमारी हाकी
का, जिसमे
सारी दुनिया
ने भारतीय हाकी का लोहा मान
लिया। सन १९२८ से १९५६ तक तो भारतीय हाकी अजेय रही थी और लगातार ६ ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते
थे। आज भी जब हम अपने हाकी .इतिहास को देखते है तो हमें गर्व होता
है कि धन्य है हम कि हमारे भारत ने हाकी में ८ स्वर्ण पदक जीते
है। लेकिन आज वही हाकी जिसने ध्यानचंद को जन्म दिया आज वो अपने वजूद कि लड़ाई लड़ रही
है आज आये दिन कोई ना कोई विवाद इसके
साथ जुड़ जाता
है। ये
खेल कहाँ
से कहाँ तक पहुच गया
है, आज भारतीय हाकी अपने स्वर्णिम युग से धरातल पर आ गयी
है। अब तो दूर दूर तक याद ही नहीं रहता कि कब हमारी हाकी टीम ने कोई बड़ी प्रतियोगिता जीती
हो। आज हाकी कि ये दुर्दशा हो गयी है कि आज खिलाड़ियों को देने के लिए पैसे नहीं
है। हाकी का महासंग्राम सिरपर खड़ा है और हमारे हाकी के प्रसाशक सरे मुद्दे सुलझाने में लगे
है। रोज नए - नए विवाद आ रहे
है, कभी
कोच कह रहा है कि कप्तान ये होगा और हाकी इंडिया कह रही है कि कप्तान ये
होगा और पता नहीं कितने विवाद इस खेल के साथ है जो लोगों को पता
नहीं। फिर भी इन सब विवादों के वावजूद भी हमारे हिम्मत से इस महासंग्राम के लिए खड़े
है। ये महासंग्राम सिर्फ एक विश्वकप नहीं है और ना ही ये एक ट्राफी
है बल्कि अब ये एक वजूद कि लड़ाई है जो की आने वाले वक़्त में हाकी कि तस्वीर और तकदीर तय
करेगी। इस महासंग्राम में वैसे तो और भी देश
है ,पर जिसकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है वो है भारत की क्यूंकि कुछ समय पहले ही हमारी हाकी ने ओलंपिक में ना
खेल पाने का जो दाग भारतवासियों को दिया है वो अभी तक धुल नहीं पाया
है। आज यह मौका
है हमारे खिलाड़ियों के लिए जिनके ऊपर दाग लगा हुआ है , उसे धोने का ये लड़ाई सिर्फ अपने कलंक को मिटने के लिए नहीं है ये लड़ाई है भारतीय हाकी को फिर से अपना वही पुराना रुतबा दिलाने कि जिसकी चमक से पूरी दुनिया कि हाकी चमकती
थी। इस महासंग्राम के लिए भारतीय खिलाड़ियों को मेरी तरफ से बहुत सारी
शुभकामनायें, आज पूरा देश और भारतीय हाकी उनकी तरफ एकटक लगा कर देख रही है देश देख रहा है कि ये खिलाड़ी हमारे कलंक को धोये जो ओलम्पिक ना खेल पाने से लगा
है, और हाकी देख रही है इस आशा से कि ये खिलाड़ी एक बार फिर से मुझे वही रुतबा दिलाएंगे जिसके लिए मैं जानी जाती
थी। हम सभी कि उम्मीदें इन खिलाड़ियों पर लगी
है। मैं संपूर्ण भारतवासियों से एक निवेदन करना चाहता हूँ कि वो सभी
इस महासंग्राम को देखे क्यूंकि ये महासंग्राम हमारी हाकी का
है। और इसे फिर से अपना पुराना रूप हासिल करने में अपना सहयोग दे और इन खिलाड़ियों के लिए प्राथना करे जो इसके लिए अपना सब कुछ लगा दे रहे
है। इस अस्तिव की लड़ाई में मैं अपनी हाकी टीम को बहुत सारी शुभकामनायें देता हूँ।
लेखक - पंकज सिंह
प्रस्तुतकर्ता - रमेश मौर्या