आज हम आधुनिक युग में हैं....जहाँ हर काम मिनटों में हो जाता है, बड़े से बड़े काम के लिए हमारे पास आज कई विकल्प होते हैं। जादा नहीं २० साल पहले चले जाएँ और हम अगर आज के आधुनिक समय कि तुलना उस वक़्त के परिवेश से करे तो हम देखंगे कि किसी भी कार्य को करने में उस वक़्त जितना समय लगता था आज हम उससे कई गुना कम समय खर्च करके और अच्छा फल प्राप्त कर लेते हैं।
जैसे कि अगर हमें पहले किसी को कोई खबर भेजनी है तो हम पत्राचार का उपयोग करते थे या तार डालते थे। और पाहुचने में कम से कम ३-५ दिन लग जाते थे, कई बार तो और भी समय लगता था। और आज हमारे पास वही खबर पाहुचाने के कई माध्यम उपलब्ध हैं जिनसे हम कुछ सेकंड खर्च करके किसी को दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी खबर दे सकते हैं जैसे - ई - मेल, मोबाइल कॉल आदि।
हमने बहुत तरक्की कि और हम सब को बहुत गर्व होना चाहिये कि आज हम इस आधुनिक युग में जी रहे हैं।
लेकिन क्या हमने कभी इस ओर ध्यान दिया कि, ये आधुनिकता हमारी धैर्य शक्ति को खाती जा रही है। हम कितने अधीर होते जा रहे हैं, जैसे जैसे हमें आधुनिकता कि लात लग रही है हम उतना ही अपना धैर्य खोते जा रहे हैं।
अपने घर से दूर रहने पर पहले अगर हमको घरवालों से बात करनी होती तो हम या तो trunk कॉल का सहारा लेते या उनको पत्र लिखते और याद अभी आई तो कम से कम १ दिन में बात होना संभव हो पता था। और तब भी हमको बहुत सुकून मिलता था कि, चलो जिसकी याद आई उससे बात तो हो गई, लेकिन आज अगर हम किसी को फ़ोन कॉल कर रहे हैं और कॉल १ बार में नहीं लगी तो हमको गुस्सा आ जाता है, यानी कि हमने अपना धीरज कुछ सेकंड में हे खो दिया।
हम तरक्की के मामले में जितने कदम आगे बढे हैं उतने ही पिछे अपने धैर्य और सहनशीलता के मामले में आ गए हैं।
तरक्की जरुरी है लेकिन ऐसी तरक्की जिससे हम अपना धैर्य खो दे तो ऐसे स्थिती के बारे में हमें सोचना होगा ।
जैसे कि अगर हमें पहले किसी को कोई खबर भेजनी है तो हम पत्राचार का उपयोग करते थे या तार डालते थे। और पाहुचने में कम से कम ३-५ दिन लग जाते थे, कई बार तो और भी समय लगता था। और आज हमारे पास वही खबर पाहुचाने के कई माध्यम उपलब्ध हैं जिनसे हम कुछ सेकंड खर्च करके किसी को दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी खबर दे सकते हैं जैसे - ई - मेल, मोबाइल कॉल आदि।
हमने बहुत तरक्की कि और हम सब को बहुत गर्व होना चाहिये कि आज हम इस आधुनिक युग में जी रहे हैं।
लेकिन क्या हमने कभी इस ओर ध्यान दिया कि, ये आधुनिकता हमारी धैर्य शक्ति को खाती जा रही है। हम कितने अधीर होते जा रहे हैं, जैसे जैसे हमें आधुनिकता कि लात लग रही है हम उतना ही अपना धैर्य खोते जा रहे हैं।
अपने घर से दूर रहने पर पहले अगर हमको घरवालों से बात करनी होती तो हम या तो trunk कॉल का सहारा लेते या उनको पत्र लिखते और याद अभी आई तो कम से कम १ दिन में बात होना संभव हो पता था। और तब भी हमको बहुत सुकून मिलता था कि, चलो जिसकी याद आई उससे बात तो हो गई, लेकिन आज अगर हम किसी को फ़ोन कॉल कर रहे हैं और कॉल १ बार में नहीं लगी तो हमको गुस्सा आ जाता है, यानी कि हमने अपना धीरज कुछ सेकंड में हे खो दिया।
हम तरक्की के मामले में जितने कदम आगे बढे हैं उतने ही पिछे अपने धैर्य और सहनशीलता के मामले में आ गए हैं।
तरक्की जरुरी है लेकिन ऐसी तरक्की जिससे हम अपना धैर्य खो दे तो ऐसे स्थिती के बारे में हमें सोचना होगा ।
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