Sunday, February 14, 2010

गरीबी ने निशाना बनाया अंतर्राष्ट्रीय खिलाडी को


विकास पाण्डेय

क़र्ज़ उतारने के लिए शूटर ने बेचा सामान
उधार लेकर ''दोहा'' गया और सिल्वर मेडल भी लेकर आया,लेकिन इस बीच वह भीषण क़र्ज़ में डूबता चला गया ,हौसला अब जवाब देने लगा है।

आज सुबह जब सोकर कर उठा और बालकनी के पास अख़बार उठाया और स्वभावतः न्यूज़ पेपर पीछे कि तरफ से स्पोर्ट्स पृष्ठ खोला तो कुछ इस तरह कि हेडलाइन देखी तो अन्दर कि स्टोरी जानने कि तीव्र इच्छा हुई, लेकिन जैसे -जैसे कहानी आगे पढ़ता गया, निराशा के साथ साथ एक सोच भी उत्पन्न होती गयी जिसकी चर्चा बाद में करता हूँ , पहले तो ज़रा इस कहानी से आपको अवगत करा दू। अंगदपुर जौहरी गावं बागपत [मेरठ ] के रहने वाले फारुख अली को डेढ़ महीने पहले दोहा में हो रहे तीसरा एशियन एयर गन चैम्पियन में भाग लेने के लिए जाना था ,फारुख भाई ने वहां जाने के लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए । चम्पियाँशिप में वे सिल्वर मेडल भी जीतकर ले आये लेकिन इस बीच इतने कर्ज़दार हो गए कि उधार चुकाने के लिए और पैसे का कोई स्रोत ना होने के कारण अब अपने मेडल और सामान बेचना शुरू कर दिया है । होनहार शूटर ने सरकार को विदेश से पदक तो जीतकर ला दिए लेकिन इस दौरान कितना रुपया खर्च हो गया इससे सरकार का कोई वास्ता नहीं है ।
फारुख भाई का परिवार गरीब तबके से सम्बन्ध रखता हैउनके घर वाले का कहना है कि "पदक पर गर्व है लेकिन सामान बेचने पर दुःख"
अब आता हूँ अपने मन में चल रहे उथल पुथल विचारों पर जो ना चाहते हुए भी सरकार को कोस रहा है, कि कभी यहाँ हाँकी पुरुष और महिला खिलाड़ी प्रोटेस्ट करते हैं तो कभी कोई खिलाड़ी इकलौता गोल्ड मेडल लाता है तो अगली बार उसे इस लायक ही नहीं समझा जाता कि वह भारत का प्रतिनिधित्व कर सके, इसे तो सिर्फ हिन्दुस्तान का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। यहाँ तो सिर्फ क्रिकेट जैसा पैसे का पेड़ ही फलता और फूलता है। फारुख अली जैसा खिलाड़ी पैसे के कारण गुमनामी के गलियारों में खो जाते हैं और हम एक लम्बी सांस लेते हैं और फिर दूसरी ख़बर कि ओर बढ कर क्रिकेट का स्कोर कार्ड देखने लगते हैं।

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