३-४ दिन पहले गाँव जाना हुआ था । दिल्ली आने के लिए प्रतापगढ़ स्टेशन से ट्रेन पर बैठे .....स्टेशन को विदा करते हुए ट्रेन आगे बढ़ी .....थोड़ी देर बाद एक सात-आठ साल का बच्चा आया जिसके हाथ में झाड़ू थी , वो नन्हा फरिस्ता ऐसा लग रहा था की उपर वाले ने ख़ुद उसे इस दुनिया की गंदगी साफ़ करने के लिए भेजा है , आँखों में एक आश और चेहरे पर मासूमियत साफ़ झलक रही थी । वो ट्रेन के कम्पार्टमेंट की सफाई इस तरह से करने में जुट गया जैसे रेलवे का सफाईकर्मी हो ,और ममता बनर्जी(वर्तमान रेलवे मंत्री ) ने ख़ुद उसकी नौकरी दिलाई हो , सफाई करने के बाद लोगो से अपना मेहनताना मांगने के लिए हाथ बढाता , कुछ लोग दया दृष्टी दिखाते हुए ..एक रुपया निकालते और उस बच्चे के हाथ में दे देते और कुछ लोग इस तरह बुत बन जाते जैसे कोई पुतला बैठा हो उसे कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता । ट्रेन और बच्चे में एक समानता नज़र आई ......ट्रेन अपनी मंजिल के लिए सफ़र कर रही थी और वो बच्चा अपने बचपन को जीने के लिए सफ़र कर रहा था । ऐसे नजाने कितने मासूम अपनी ज़िन्दगी के लिए सफ़र कर रहे है । इन बच्चों के लिए कहने को तो बहुत से N.G.O (non government organization) और कई तरह की सरकारी संस्था काम करती है । लेकिन इन सब संस्थाओ का असर कम ही दिखाई देता है .
Thursday, February 11, 2010
ट्रेन में सफ़र करता बचपन ......
देवेश प्रताप
३-४ दिन पहले गाँव जाना हुआ था । दिल्ली आने के लिए प्रतापगढ़ स्टेशन से ट्रेन पर बैठे .....स्टेशन को विदा करते हुए ट्रेन आगे बढ़ी .....थोड़ी देर बाद एक सात-आठ साल का बच्चा आया जिसके हाथ में झाड़ू थी , वो नन्हा फरिस्ता ऐसा लग रहा था की उपर वाले ने ख़ुद उसे इस दुनिया की गंदगी साफ़ करने के लिए भेजा है , आँखों में एक आश और चेहरे पर मासूमियत साफ़ झलक रही थी । वो ट्रेन के कम्पार्टमेंट की सफाई इस तरह से करने में जुट गया जैसे रेलवे का सफाईकर्मी हो ,और ममता बनर्जी(वर्तमान रेलवे मंत्री ) ने ख़ुद उसकी नौकरी दिलाई हो , सफाई करने के बाद लोगो से अपना मेहनताना मांगने के लिए हाथ बढाता , कुछ लोग दया दृष्टी दिखाते हुए ..एक रुपया निकालते और उस बच्चे के हाथ में दे देते और कुछ लोग इस तरह बुत बन जाते जैसे कोई पुतला बैठा हो उसे कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता । ट्रेन और बच्चे में एक समानता नज़र आई ......ट्रेन अपनी मंजिल के लिए सफ़र कर रही थी और वो बच्चा अपने बचपन को जीने के लिए सफ़र कर रहा था । ऐसे नजाने कितने मासूम अपनी ज़िन्दगी के लिए सफ़र कर रहे है । इन बच्चों के लिए कहने को तो बहुत से N.G.O (non government organization) और कई तरह की सरकारी संस्था काम करती है । लेकिन इन सब संस्थाओ का असर कम ही दिखाई देता है .
३-४ दिन पहले गाँव जाना हुआ था । दिल्ली आने के लिए प्रतापगढ़ स्टेशन से ट्रेन पर बैठे .....स्टेशन को विदा करते हुए ट्रेन आगे बढ़ी .....थोड़ी देर बाद एक सात-आठ साल का बच्चा आया जिसके हाथ में झाड़ू थी , वो नन्हा फरिस्ता ऐसा लग रहा था की उपर वाले ने ख़ुद उसे इस दुनिया की गंदगी साफ़ करने के लिए भेजा है , आँखों में एक आश और चेहरे पर मासूमियत साफ़ झलक रही थी । वो ट्रेन के कम्पार्टमेंट की सफाई इस तरह से करने में जुट गया जैसे रेलवे का सफाईकर्मी हो ,और ममता बनर्जी(वर्तमान रेलवे मंत्री ) ने ख़ुद उसकी नौकरी दिलाई हो , सफाई करने के बाद लोगो से अपना मेहनताना मांगने के लिए हाथ बढाता , कुछ लोग दया दृष्टी दिखाते हुए ..एक रुपया निकालते और उस बच्चे के हाथ में दे देते और कुछ लोग इस तरह बुत बन जाते जैसे कोई पुतला बैठा हो उसे कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता । ट्रेन और बच्चे में एक समानता नज़र आई ......ट्रेन अपनी मंजिल के लिए सफ़र कर रही थी और वो बच्चा अपने बचपन को जीने के लिए सफ़र कर रहा था । ऐसे नजाने कितने मासूम अपनी ज़िन्दगी के लिए सफ़र कर रहे है । इन बच्चों के लिए कहने को तो बहुत से N.G.O (non government organization) और कई तरह की सरकारी संस्था काम करती है । लेकिन इन सब संस्थाओ का असर कम ही दिखाई देता है .
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हमारे देश की यह तस्वीर बड़ी दारूण हैं लेकिन इसके लिए कहीं न कही ऐसे बच्चों के माता-पिता भी दोषी हैं।
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