एक समय हुआ करता था । जब गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल जाना पड़ता था मोह-माया छोड़ कर भौतिकवाद को त्याग कर शिक्षा प्राप्त किया जाता था , परन्तु समय के अनुसार धीरे धीरे सारे नियम बदलते गए जो की जरूरी भी था , शिक्षा ग्रहण करने के लिए इमारते बन् ने लगी बड़े बड़े विद्यालय -विश्वविद्यालय बन कर तैयार होने लगे । शिक्षा का ऐसा विस्तार भारत देश के लिए अतिआवाश्यक था । शिक्षा के विस्तार का मतलब देश का विस्तार जितने ज्यादा लोग शिक्षित होंगे उतना ही देश का विकास होगा ,ऐसा माना जाता है । जैसे -जैसे शिक्षा का निजी करण बढ़ता गया वैसे वैसे शिक्षा का व्यापार भी बढ़ गया । या यूँ कहिये खरीदारी बढती गयी । आज के दौर में धुंआ -धाड़ डिग्रियां बिक रही है । बस खरीदार के पास उतनी रकम होने चाहिये । ये माना कि निजी विद्यालय जितनी रकम लेते है कम से कम उतनी व्यवस्था भी मुहैया कराते है । आज के दौर में फीस महंगी हो तो विद्यालय अच्छा ही होगा ये जरूरी नहीं ये मात्र एक वहम होता है । दिल्ली और आस पास कुछ ऐसे विद्यालय है जो होटल की राह पर चलते है । या यूँ कहिये शिक्षा बेचने की ५ सितारा दूकान चलाते है । यदि आप अपने बच्चे को वातानुकूलित कमरे में पढ़ाना चाहते है तो उसके इतने रु ........ फीस है, यदि सामान्य कमरे में पढाना चाहते है तो उसके इतने रु .......है , वाह ! क्या व्यवस्था है एक ही छत के नीचे, एक ही कक्षा में राम और श्याम अलग -अलग कमरे में पढते होंगे । राम, सामान्य कमरे में पढता होगा और श्याम वातुनुकूलित कमरे में ,लेकिन यहाँ राम और श्याम बाहर निकलने पर ,राम- श्याम से बात करने में असहजता महसूस करता होगा क्यूंकि कही न कही उस बच्चे की दिमाग में आता होगा की मैं क्यों नहीं वातानुकूलित कमरें में पढता ??,,,,ऐसे नजाने कितने प्रश्न उठते होंगे ,उन मासूमो के दिमाग में जो ...सामान्य कमरे में पढ़ने के लिए दाखिला लिए होंगे । ऐसे विद्यालय .....क्या शिक्षा देते होंगे ? यदि सच में कोई शिक्षक होगा तो इस विद्यालय की डेहरी पार करने में उसका ज़मीर साथ नहीं देगा ........मुझे तो बिलकुल नहीं लगता की ऐसे विद्यालय में शिक्षक पढाते होंगे ....वो भी व्यापारी होंगे किताबों के ......और जो इस विद्यालय की नीव रखा होगा उसका तो शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होगा .......वो व्यक्ति भी जरूर किसी होटल का व्यापारी होगा । और जो अभिभावक उस विद्यालय में अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेजते होंगे .......वो शायद अपने आप से मजबूर होंगे । विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ........कही तो पवित्रता बरकार रहने दो ...........!!!
Thursday, February 18, 2010
विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ...........
देवेश प्रताप
एक समय हुआ करता था । जब गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल जाना पड़ता था मोह-माया छोड़ कर भौतिकवाद को त्याग कर शिक्षा प्राप्त किया जाता था , परन्तु समय के अनुसार धीरे धीरे सारे नियम बदलते गए जो की जरूरी भी था , शिक्षा ग्रहण करने के लिए इमारते बन् ने लगी बड़े बड़े विद्यालय -विश्वविद्यालय बन कर तैयार होने लगे । शिक्षा का ऐसा विस्तार भारत देश के लिए अतिआवाश्यक था । शिक्षा के विस्तार का मतलब देश का विस्तार जितने ज्यादा लोग शिक्षित होंगे उतना ही देश का विकास होगा ,ऐसा माना जाता है । जैसे -जैसे शिक्षा का निजी करण बढ़ता गया वैसे वैसे शिक्षा का व्यापार भी बढ़ गया । या यूँ कहिये खरीदारी बढती गयी । आज के दौर में धुंआ -धाड़ डिग्रियां बिक रही है । बस खरीदार के पास उतनी रकम होने चाहिये । ये माना कि निजी विद्यालय जितनी रकम लेते है कम से कम उतनी व्यवस्था भी मुहैया कराते है । आज के दौर में फीस महंगी हो तो विद्यालय अच्छा ही होगा ये जरूरी नहीं ये मात्र एक वहम होता है । दिल्ली और आस पास कुछ ऐसे विद्यालय है जो होटल की राह पर चलते है । या यूँ कहिये शिक्षा बेचने की ५ सितारा दूकान चलाते है । यदि आप अपने बच्चे को वातानुकूलित कमरे में पढ़ाना चाहते है तो उसके इतने रु ........ फीस है, यदि सामान्य कमरे में पढाना चाहते है तो उसके इतने रु .......है , वाह ! क्या व्यवस्था है एक ही छत के नीचे, एक ही कक्षा में राम और श्याम अलग -अलग कमरे में पढते होंगे । राम, सामान्य कमरे में पढता होगा और श्याम वातुनुकूलित कमरे में ,लेकिन यहाँ राम और श्याम बाहर निकलने पर ,राम- श्याम से बात करने में असहजता महसूस करता होगा क्यूंकि कही न कही उस बच्चे की दिमाग में आता होगा की मैं क्यों नहीं वातानुकूलित कमरें में पढता ??,,,,ऐसे नजाने कितने प्रश्न उठते होंगे ,उन मासूमो के दिमाग में जो ...सामान्य कमरे में पढ़ने के लिए दाखिला लिए होंगे । ऐसे विद्यालय .....क्या शिक्षा देते होंगे ? यदि सच में कोई शिक्षक होगा तो इस विद्यालय की डेहरी पार करने में उसका ज़मीर साथ नहीं देगा ........मुझे तो बिलकुल नहीं लगता की ऐसे विद्यालय में शिक्षक पढाते होंगे ....वो भी व्यापारी होंगे किताबों के ......और जो इस विद्यालय की नीव रखा होगा उसका तो शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होगा .......वो व्यक्ति भी जरूर किसी होटल का व्यापारी होगा । और जो अभिभावक उस विद्यालय में अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेजते होंगे .......वो शायद अपने आप से मजबूर होंगे । विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ........कही तो पवित्रता बरकार रहने दो ...........!!!
एक समय हुआ करता था । जब गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल जाना पड़ता था मोह-माया छोड़ कर भौतिकवाद को त्याग कर शिक्षा प्राप्त किया जाता था , परन्तु समय के अनुसार धीरे धीरे सारे नियम बदलते गए जो की जरूरी भी था , शिक्षा ग्रहण करने के लिए इमारते बन् ने लगी बड़े बड़े विद्यालय -विश्वविद्यालय बन कर तैयार होने लगे । शिक्षा का ऐसा विस्तार भारत देश के लिए अतिआवाश्यक था । शिक्षा के विस्तार का मतलब देश का विस्तार जितने ज्यादा लोग शिक्षित होंगे उतना ही देश का विकास होगा ,ऐसा माना जाता है । जैसे -जैसे शिक्षा का निजी करण बढ़ता गया वैसे वैसे शिक्षा का व्यापार भी बढ़ गया । या यूँ कहिये खरीदारी बढती गयी । आज के दौर में धुंआ -धाड़ डिग्रियां बिक रही है । बस खरीदार के पास उतनी रकम होने चाहिये । ये माना कि निजी विद्यालय जितनी रकम लेते है कम से कम उतनी व्यवस्था भी मुहैया कराते है । आज के दौर में फीस महंगी हो तो विद्यालय अच्छा ही होगा ये जरूरी नहीं ये मात्र एक वहम होता है । दिल्ली और आस पास कुछ ऐसे विद्यालय है जो होटल की राह पर चलते है । या यूँ कहिये शिक्षा बेचने की ५ सितारा दूकान चलाते है । यदि आप अपने बच्चे को वातानुकूलित कमरे में पढ़ाना चाहते है तो उसके इतने रु ........ फीस है, यदि सामान्य कमरे में पढाना चाहते है तो उसके इतने रु .......है , वाह ! क्या व्यवस्था है एक ही छत के नीचे, एक ही कक्षा में राम और श्याम अलग -अलग कमरे में पढते होंगे । राम, सामान्य कमरे में पढता होगा और श्याम वातुनुकूलित कमरे में ,लेकिन यहाँ राम और श्याम बाहर निकलने पर ,राम- श्याम से बात करने में असहजता महसूस करता होगा क्यूंकि कही न कही उस बच्चे की दिमाग में आता होगा की मैं क्यों नहीं वातानुकूलित कमरें में पढता ??,,,,ऐसे नजाने कितने प्रश्न उठते होंगे ,उन मासूमो के दिमाग में जो ...सामान्य कमरे में पढ़ने के लिए दाखिला लिए होंगे । ऐसे विद्यालय .....क्या शिक्षा देते होंगे ? यदि सच में कोई शिक्षक होगा तो इस विद्यालय की डेहरी पार करने में उसका ज़मीर साथ नहीं देगा ........मुझे तो बिलकुल नहीं लगता की ऐसे विद्यालय में शिक्षक पढाते होंगे ....वो भी व्यापारी होंगे किताबों के ......और जो इस विद्यालय की नीव रखा होगा उसका तो शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होगा .......वो व्यक्ति भी जरूर किसी होटल का व्यापारी होगा । और जो अभिभावक उस विद्यालय में अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेजते होंगे .......वो शायद अपने आप से मजबूर होंगे । विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ........कही तो पवित्रता बरकार रहने दो ...........!!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शिक्षा और चिकित्सा जो कभी समाज सेवा का दूसरा रूप कहा जाता था दोनों ही पहले व्यवसाय फ़िर धंधे के रूप में परिवर्तित हो गए हैं ,अच्छा आलेख
ReplyDeleteअजय कुमार झा
ajay ki vicharon se sahamat.
ReplyDelete