Monday, February 1, 2010

५० रु की ईमानदारी





सुबह ७ बजे मेरे मित्र विकास कि कॉल आई, यार रमेश तू उठ के जल्दी से तयार हो जा हमें आज बाज़ार चलना है कुछ कपड़े खरीदने हैं, मैं १० बजे तक तुम्हारे पास आ जाऊंगा फिर लाजपतनगर मार्केट चलना है।

विकास अपनी मोटर साइकिल से १० बजे तक मेरे घर आ गया, हम ११ बजे लाजपत नगर पाहुचे। विकास ने कहा कि यार पहले मोटर साइकिल को पार्किंग में लगा देते हैं फिर कपड़े देखते हैं आराम से, हमने मार्केट में पार्किंग खोजी लेकिन हमें मिली नहीं, १ बन्दे से पूछा तो उसने बताया कि सामने वाली रोड पार करते ही पास में ही पार्किंग है ।

विकास ने मोटर साइकिल वही से सामने वाली रोड पर मोड़ दी, हम थोड़ी दूर ही गए थे तभी सामने १ ट्राफिक हवलदार आ के खड़ा हो गया और हमको मोटर साइकिल रोकने का इशारा किया। हमने मोटर साइकिल रोड के किनारे करके के रोक दी । ट्राफिक हवलदार ने अपनी चलान रसीद निकालते हुए कहा कि तुम्हारा चालान होगा, तो विकास ने पूछा कि किस बात का चालान करोगे, तो हवलदार ने पीछे की तरफ इशारा किया और बताया की तुम नो एंट्री में घुस गए हो और हमें नो एंट्री का का बोर्ड लगा हुआ दिखाया । हमने पूछा की कितने का चालान है, हवलदार ने कहा १०० रु का चालान है नो एंट्री में घुसने का। हम अभी हवलदार से बात ही कर रहे थे कि उसके पीछे से २ मोटर साइकिल वाले नो एंट्री से निकल गए, हमने कहा की उनको भी रोको वो भी तो मो एंट्री में जा रहे हैं, तो हवालदार ने कहा की मैं १-१ से निपटात हूँ पहले आप का काम आकर दू फिर दूसरो को देखूंगा।

उसने मोटर साइकिल के पेपर मांगे, तो हमने कहा की सर पेपर में क्या रखा है जो कुछ लेना हो ले दे के मामल ख़तम करो। हवालदार ने कहा की मुझे रिश्वतखोर मत समझो, मैं इमानदार आदमी हु। कम से कम १०० रु का चालान तो होगा ही, मैं १००रु के लिए अपनी २० साल की नौकरी पर दाग नहीं लगने दूंगा, क्या समझते हो तुम लोग की १००रु में मैं बिक जाऊंगा, फिर हवालदार ने कहा की अब तो सारे पेपर जाँच करूँगा उसके बाद हे जाने दूंगा, तभी विकास ने मेरे कान में कहा की यार अब तो बुरा फसे क्यूंकि बीमा तो अभी पिछले हफ्ते ख़तम हुआ है और अभी मैंने फिर से करवाया नहीं है अगर पेपर दिखा दूंगा तो लम्बा झटका लागेगा और चालान भी कम से कम ५०० रु का होगा।

हमने सोचा की १ आखरी कोशिश और करते हैं इसको पटाने की वरना जो होगा झेलेंगे फिर, मैंने ५० रु का नोट जेब से निकाल के विकास को दिया और विकास ने उस हवालदार की और वो नोट बढ़ा दिया और कहा की सर ये लो आप भी चाय पानी करो और हमको भी जाने दो, पेपर चेक करने का और चालान काटने का झमेला क्यूँ पालते हो, हवालदार ने कुछ देर सोचा फिर कहा की नहीं इसमे काम नहीं होगा और ५० दो, तो मैंने कहा की अगर मुझे १०० रु आपको ही देने हैं तो आप मेरा १०० का चालान काट दो, जिससे पैसा कम से कम सरकार के पास तो जयेगा और आपकी नौकरी ईमानदारी पर दाग तो नहीं लागेगा रिश्वत खोरी का, तो हवालदार साहब ने मुस्कुराते हुए कहा की चलो ठीक है इस बार छोड़ देता हु आगे से ध्यान रखना नो एंट्री का। और इतना कहते हुए उनोहोने ५०रु का नोट अपनी जेब में रखा और जुट गए किसी और ५० की नोट के चक्कर में। हमने भी गाडी पार्क की और कपडे खरीदने मार्केट चले गए।

मैं यही सोचा रहा था की हमने आज ५० रु के लिए १ इंसान से गलत काम करवाया और ये भे ख्याल आ रहा था की ५० रु के लिए १ इंसान आज अपनी ईमानदारी और कर्म से गद्दारी कर गया।

2 comments:

  1. उनका तो खैर रोज का ही काम है इस तरह बिकना. आप भी अपराध बोध न रख आगे हर संभव प्रयास करें कि ऐसी स्थितियाँ न निर्मित हों.

    वैसे इसे रिश्कोवत की जगह कोई सुविधा शुल्क का नाम दे रहा था. :)

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  2. ऐसे जाने कितने ५० रुपये इकट्ठे करके हजार हो जाते हैं इन लोगों के पास, अगली बात १०० की ही रसीद कटवा लें, बेचारे की वर्दी पर दाग लगने से बच जायेगा।

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Thanks