देवेश प्रताप
समां और परवाना एक दूसरे से अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहते है .....
समां कहती है
जलने दो मुझे
अकेले इस विरह में
तुम यूँ ने मेरे पास
आया करो,
परवाना कहता है
तुम्हारे इस प्यार पर
प्रिय ,मैं मिलने के
लिए मचल जाता हूं ,
समां
बिखर जाती हूँ
तेरा प्यार पा कर,
तेरे छुअन से मैं
परवाना
तेरे आगोश में
आकार मै खो जाता हूं
जन्नत तेरे प्यार में पा
जाता हूं
समां
ए परवाने
ये समां तेरे लिए ही
रोशन होती है ,
तेरे प्यार में जलकर
इस जहां को रोशन करती है ॥
रामेश जी, देवेश जी के ब्लाग और आपके इस ब्लाग पर आ कर बहुत अच्छा लगा। प्रतापगढ़ की धरती से नये और उम्दा ब्लाग लेखक निकल रहे है, मन प्रसन्न हुआ। आप लोगो का हार्दिक स्वागत है, चाहूँगा कि आप अपने लेखन को इसी तरह शिद्ध करते रहे।
ReplyDeleteजय हिन्द