Monday, March 1, 2010

ऐसा विकास किस काम का






जब भी बात उठती है सहनशीलता की शर्म हया की तब हम नारी का जिक्र करता हैं, की हमारी भारतीय नारी सहनशीलता शर्म हया की देवी होती है। हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है, हम पूजा करते हैं इनकी।
लेकिन जब भी बात उठती है अपने मन के विचारों को प्रगट करने की , अपनी भावनाओ को को लेकर खुले मन से बात करने की , स्वछंद हो के खुले आस्मां में अपने मन की मनमानी करने की तब भी हम हमारी भारतीय नारी को दबा कुचला पाते हैं।
कभी कभी सोच के मन बहुत विचलित हो जाता है की ये कैसा समाज है हमारा जहाँ १ तरफ हम नारी को शक्ति की देवी मान के पूजा करते हैं , तो दूसरी तरफ महेज कुछ दहेज़ के पैसो के लिए जला देते हैं। कितना दोगला पन है इस समाज में।
कई बार देखने में आया है की जिसको हम रक्षक समझते हैं वही भक्षक निकलता है।
मेरे शहर में जो नारी समाज कल्याण के अध्यक्ष थे उनोहोने ही अपने बेटे की शादी के २ साल बाद अपनी बहु को दहेज़ के लिए के मार दिया ।
हर चीज में हमने आज बहुत तरक्की कर ली है और सामाजिक तौर पर भी हम आज बहुत मजबूत हो गए हैं। लेकिन आज भी जब बात आती है नारी की तो हम सब फिर से गैर जिम्मेदार और १ बिना विकसित दिमाग वाले इन्सानकी तरह सोचने लगते हैं।
अगर लड़की घर से बहार जा रही है तो किस रस्ते से जाऐगी, क्या पहेन के बहार जाऐगी। कई बार यहाँ तक होता है की अपने मोबाइल में किसका नंबर रखन है किसका नहीं ये फैसल भी उसका नहीं होता है। हम विकास कर रहे हैं समाज की भलाई के लिए और उन्नति के लिए लेकिन अगर समाज के १ वर्ग को दबा दिया जाऐगा तो ऐसा विकास किस काम का।

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Thanks