Thursday, January 28, 2010

आज भी असमंजस में रहते है........

देवेश प्रताप

जाने क्यों मुझे ले कर घर वाले आज भी असमंजस में रहते है के आगे की ज़िन्दगी में कुछ कर लेगा या नहीं क्यूंकि जो उन्होंने चाहा वो कभी कर नहीं पाया शुरू से मेरे घर वाले कहते थे के मै I.A.S बनू लेकिन मै अपने आपको पहचानता था की मै I AS नहीं बन सकता क्यूंकि पढ़ाई से मै हमेशा दूर भागता था वो व़क्त था जब ज्ञान से वाकिफ नहीं था मै हमेशा याद करने जैसे विषय से दूर रहता था मुझे वो विषय अच्छे लगते थे जिसमें अपना मत देना हो कुछ भी रटा -रटाया हो इलाहाबाद विश्वविद्दालय से स्नातक दुतीय वर्ष छोड़ कर जन संचारिता करने दिल्ली चले आये क्युकी वहा भी वो संतुस्टी नहीं मिल रही थी जो मै चाहता था घर वाले आपनी आशाओ का आशियाना टूटते देखा जो की मुझमें वो अपने सपने देखा करते थे मै ख़ुद सहमा था इस नए सफ़र के लिए क्यूंकि ये आखरी मौका था पने आप को साबित करने का खैर इस नए रास्ते पे चले तो आये लेकिन अपने घरवालो की उम्मीदों के दरवाजे पर ताला लगा कर उनके हर एक सपने को शीशे की तरह चखना चूर कर दिया आज जब भी उनके सामने जाया करता हु उनकी नजरो में आपने आपको केवल एक प्रश्न चिन्ह की तरह पाता हु शायद उनका ये प्रश्न चिन्ह लाज़मी है क्युकी अभी तक किसी भी उम्मीद पर ख़रा नहीं उतरा लेकिन मैंने भी ये तय किया है के उस प्रश्न चिन्ह को गुमान में बदल कर रहंगे शायद इस बात के लिए थोडा सा व़क्त लगे .........ये कुछ पंक्तिया जो मन में लहरों की तरह उठती रहती है


हर
सफ़र में कांटे बिछे होते है
अक्सर वो कांटे पैरों में चुभा करते है

दर्द होता है जब कांटो को हाथो से निकाला करते है
सहन तब नहीं होता जब अपने खड़े होकर निहारा करते है

मुश्किलें आशान नहीं होती रास्ता ख़ुद तय करने से
सीढिया कम नहीं होती मंजिल तक पहुँचने में


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