Thursday, January 7, 2010

अपने ही देश में सहम गयी है ... .......

देवेश प्रताप
दिन से इन्टरनेट में कुछ समस्या चल रही थी । समस्या का समाधान के लिए ग्राहकसेवा (custmer care ) में फ़ोन किया । फ़ोन के दूसरी तरफ .से आवाज़ आई ....
दुसरे तरफ -- hello this is ----net how may assist.
मै -- हेल्लो मै देवेश बोल रहा हु दिल्ली से ....मेरा नेट २ दिन से काम नहीं कर रहा है ।
दूसरी तरफ --- sir may i know your login id .
मै--हांजी लिखिए .......------- ।
दूसरी तरफ --- sir please stay online .

मै------- जी बिलकुल

इतनी बात के बाद जब हमें फ़ोन होल्ड करने को कहा तो.......उतनी देर मै यही सोचता रहा की ...फ़ोन के दूसरी तरफ वाले को लगता हिंदी बोलना नहीं आता ........लकिन हिंदी समझने में सक्षम है । यही सोचा था की तब तक फिर से उधर से आवाज आई ... thank u sir for stay online ......इतना कहते ही मै आपने आप को सम्भालते हुआ बोला ........do u know hindi ?....उधर से फिर आवाज़ आई की .....yes sir i know hindi ...........ये सुनने के बाद हमें ऐसा लगा जैसे मै आपने ही देश मै गैर हु ............खैर मेरे ये कहने पर की '' आप से मै हिंदी में बात कर रहा हैं और आप अंग्रेजी में ही बात किये जा रही है '' ये शब्द कहने पर वो हिंदी में बात करना शुरू कर दिया । आज हिंदी को लोग इतना नज़रंदाज़ क्यों करना शुरू कर दिया है । क्या इसलिए की आज की दिखावे की ज़िन्दगी में अंग्रेजी एक शान है । आज हिंदी आपनी ही जन्म भूमि में सहम - सहम के जी रही है आखिर क्यों ? शायद इसलिए भारतीय सभ्यता के अनुसार मेहमानों को भगवान् की तरह मानते है ..........यही हाल अंग्रेजी के साथ (यु तो भाषा किसी की विरासत नहीं ) अंग्रेजी को भारत में लोगो ने मेहमानों की तरह अपनाया है । लेकिन इस मेहमान नवाजी में हिंदी को लोग बेगाना करते जा रहे है । आज हिंदी उस दुल्हन की तरह विरह झेल रही है जैसे उसका प्रियतम उससे दूर होता जा रहा है ।

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